कहा जाता
है कि जब भी व्यक्ति किसी दुर्घटना या बीमारी से अकारण मृत्यु को प्राप्त होता है या मृत्यु के समय यदि कोई इच्छा अधूरी रह जाती है तो जातक पितृ योनि को प्राप्त होता है और वह इस योनि में भटकता रहता है जब तक उसकी इच्छा पूर्ण नहीं कर दी जाती या इच्छा शांत नहीं कर दी जाती।
वह अतृप्त आत्मा परिवार वालों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अनेक प्रकार से परेशान करना शुरू कर देती है। पितृ दोष निवारण के पश्चात् जब यह आत्मा शांत हो जाती है तो वह पुनर्जन्म ले लेती है या ईश्वर में लीन हो जाती है।
यदि पितृ आपके कर्मों से संतुष्ट व सुखी हैं तो आपको इसका विशेष लाभ भी मिलता है। आप जिस कार्य को शुरू करते हैं उसी में लाभ होता है। आपका शौर्य दिन प्रतिदिन बढ़ता जाता है। रोग और कलह पास भी नहीं फटकते।
ऐसा माना जाता है कि जिस परिवार में अधिकतर लोग सात्विक प्रवृत्ति वाले, धर्माचरण करने वाले व ईश्वर की नियमित रूप से प्रार्थना करने वाले होते हैं ऐसे सद्गुणी व संस्कारी लोगों के जीवन में अनहोनी घटनाएं जैसे अल्पमृत्यु, आदि की संभावनाएं कम रहती हैं तथा पितृदोष आदि नहीं होते।
गुरु ग्रह हमारे पूर्वजों का कारक है। इसके अच्छा होने की स्थिति में हमें पिता, पितामह व उनके भी बुजूर्गों की अच्छी आत्माओं का स्नेह व शक्ति प्राप्त होती रहती है। यदि परिवार के अधिकतर सदस्यों के हाथ में गुरु पर्वत उभरा हुआ हो तो अधिकतर लोग सत्वगुणी होंगे तथा संतान सुख भी अच्छा रहेगा। ऐसे परिवारों में पितृ दोष नहीं होता तथा कुल की उन्नति निरंतर होती रहती है एवम् संतान खूब फलती फूलती है।
कुंडली में पितृ दोष:
- पंचम, नवम भाव में सूर्य या चंद्रमा के साथ राहु होने से पितृदोष होता है।
- पंचमेश या नवमेश नीचराशिस्थ हों या अशुभ भावों में हों अथवा राहु/केतु आदि से संयुक्त हों तो भी पितृदोष होता है।
- यदि राहु या केतु सूर्य के साथ दस अंशों से कम की दूरी पर स्थित हो तो पितृ दोष बढ़ जाता है और यदि राहु&केतु के नक्षत्र में सूर्य] चंद्र हों तो भी पितृ दोष और अधिक हो जाता है।
- लाल किताब के अनुसार यदि शुक्र] बुध] अथवा राहु में से कोई एक दो या तीनों ग्रह दूसरे पांचवें] नवें या 12वें भाव में हों तो पितृदोष होता है।
पितृ दोष लक्षण
- यदि परिवार में किसी बुजुर्ग के बाल सफेद होने के पश्चात् पीले होने लगें या काली खांसी हो जाए तो यह पितृ दोष के लक्षण हैं।
- माथे पर दुनिया की गंदी करतूतों का कलंक लग जाए तो यह पितृ दोष का लक्षण है।
- परिवार में अक्सर कलह रहती है।
- परिवार में कोई न कोई बीमारी बनी रहती है।
- परिवार में सदा आर्थिक तंगी रहती है और काम बनते&बनते बार&बार बिगड़ जाते हैं।
- संतान नहीं होती है या संतान मानसिक व शारीरिक रूप से कमजोर होती है।
- विवाह में अति विलम्ब होते हैं।
पितृ पूजा के लिए आवश्यक निर्देश:
- पितरों को मांस वाला भोजन न अर्पित करें।
- पूजा के दिन स्वयं भी मांस भक्षण न करें।
- पितृ पूजा में स्टील, लोहा, प्लास्टिक, शीशे के बर्तन का प्रयोग न करें। मिट्टी या पŸाों के बर्तनों का ही प्रयोग करें।
- घंटी न बजाएं।
- पितृ पूजा करने वाले व्यक्ति की पूजा में व्यवधान न डालें।
- बुजुर्गों का सम्मान करें।
पितृ की पहचान:
- श्रीमद् भगवद् गीता के ग्यारहवें अध्याय का पाठ करें तो आपको कुछ दिनों में ही स्वप्न में पितृ दर्शन होंगे।
- रात को सोने से पहले हाथ पैर धोकर अपने मन में अपने पितृ से प्रार्थना करें कि जो भी मेरे पितृ हैं वे मुझे दर्शन दें।
- यदि आपका कोई कार्य अटक रहा है तो अपने पितृ को याद कीजिए और उन्हें कहें कि यदि आप हैं तो मेरा अमुक कार्य हो जाए। मैं आपके लिए शांति पाठ कराउंगा। आपकी ऐसी प्रार्थना से कार्य सिद्धि हो जोने पर यह प्रमाणित हो जाएगा कि आपको पितृ शांति करवानी चाहिए।
पितृ दोष उपाय:
- श्राद्ध पक्ष में मृत्यु तिथि के दिन तर्पण व पिंडदान करें। ब्राह्मण को भोजन कराएं व वस्त्र/दक्षिणा आदि दें।
- यदि मृत्युतिथि न मालूम हो तो श्राद्ध पक्ष की अमावस्या के दिन तर्पण व पिंडदानादि कर्म करें
- प्रत्येक अमावस्या विशेषतः सोमवती अमावस्या को पितृभोग दें। इस दिन गोबर के कंडे जलाकर उसपर खीर की आहुति दें। जल के छींटे देकर हाथ जोड़ें व पितृ को नमस्कार करें।
- सूर्योदय के समय सूर्य को जल दें व गायत्री मंत्र का जप करें।
- पीपल के पेड़ पर जल, पुष्प, दूध, गंगाजल व काले तिल चढ़ाकर पितृ को याद करें, माफी और आशीष मांगें।
- रविवार के दिन गाय को गुड़ या गेहूं खिलाएं।
- लाल किताब के अनुसार परिवार में जहां तक खून का रिश्ता है जैसे दादा, दादी, माता, पिता, चाचा, ताया, बहन] बेटी] बुआ] भाई सबसे बराबर&बराबर धन] 1] 5 या दस रुपए लेकर मंदिर में दान करने से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।
- हरिवंश पुराण का श्रवण और गायत्री जप पितृ शांति के लिए लोकप्रसिद्ध है।
- गया या त्रयंबकेश्वर में त्रिपिंडी श्राद्ध नन्दी श्राद्ध करें।
- नारायणबलि पूजा करवाएं।
- पितृ दोष निवारण उपायों में गया में पिंडदान, गया श्राद्ध तथा पितृ भोग अर्पण आदि क्रियाएं करते हुए निम्नांकित पितृ गायत्री का उच्चारण करना चाहिए। पितृ कर्म हेतु साल में 12 मृत्यु तिथि, 12 अमावस्या, 12 पूर्णिमा, 12 संक्रांति, 12 वैधृति योग, 24 एकादशी व श्राद्ध के 15 दिन मिलाकर कुल 99 दिन होते हैं।
- पितृ गायत्री का अनुष्ठान करवाएं।
पितृ गायत्री मंत्र:
ऊँ देवताभ्य पितृभ्यश्च महायोगिभ्येव च।
नमः स्वाहायै स्वधायैः नित्यमेव नमो नमः।।
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